हर दिन कुछ न कुछ मुसीबत का सामना करना ही पड़ता है तब सोचता हूँ कल कुछ अच्छा होगा सोच-सोच कर आज तक पहुँचा लेकिन कभी भी इस उम्र तक स्थिति कुछ सुधरी तो नहीं अभी भी इंतजार है उस कल का!
हिंदी समय में सुमित पी.वी. की रचनाएँ
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